हिमालय में प्रसारित प्रथम मुद्रायें हैं कुणिंद सिक्के

अल्मोड़ा का राजकीय संग्रहालय अपनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों के कारण इतिहासविदों, मुद्रा शास्त्रियों एवं पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। यहां प्रदर्शित दुर्लभ कुणिन्द मुद्रायें केवल अल्मोड़ा, शिमला (हिंमाचल प्रदेश) तथा ब्रिटिश म्यूजियम में ही हैं। प्रारम्भ में कुणिन्दों की मुद्रायें केवल अल्मोड़ा...

अल्मोड़ा का गौरवशाली इतिहास है

अल्मोड़ा नगर का इतिहास पुराना है। अल्मोड़ा नाम एक पवित्र घास के कारण पड़ा जिसे स्थानीय लोग कटारमल सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना के लिए ले जाते थे। यह घास इस क्षेत्र में प्रचुरता से होती थी। लगभग साढ़े चार सौ साल पुराने अल्मोड़ा की राजनैतिक कथा चम्पावत से चंद वंश के राजा भीष्म चंद के अल्मोड़ा आगमन तथा...

अल्मोड़ा नगर के रक्षक हैं अष्ट भैरव

उत्तराखंड में सर्वहारा वर्ग के सर्वप्रिय यदि किसी देवता का उल्लेख करना हो तो निश्चित ही वह देवता हैं-भैरव। पर्वतीय समाज में उन्हें लौकिक देवता का स्थान मिला हुआ है। उनके छोटे- छोटे मंदिर निर्जन वनों से लेकर गांव- समाज के आसपास की बसासत तक सभी जगह मिलते हैं। शिव रूप भैरव को ना केवल उग्र देवता के रूप...

सिस्टर निवेदिता की स्मृतियां संजोये है अल्मोड़ा का निवेदिता काॅटेज

स्वामी विवेकानंद की प्रथम विदेशी शिष्या सिस्टर निवेदिता को कौन नहीं जानता। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सिस्टर निवेदिता को भारतीय ध्यान साधना और उसके अनुसरण की प्रक्रिया का ज्ञान स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में ही दिया था। सिस्टर निवेदिता ने अल्मोड़ा के जिस भवन मे में प्रवास किया उसे आज...

शुभता और मांगल्य की प्रतीक है कुमाउनी नथ

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में महिलाओं की मांगलिक परिधान एवं आभूषणों को लेकर यदि पहली पसंद पूंछी जाये तो उनका उत्तर होगा- पिछौड़ा एवं नथ। नथ ग्रामीण हो या शहरी सभी महिलाओं की सर्वप्रिय मांगलिक आभूषण है। शायद ही कोई अवसर ऐसा होगा जब परिवार में उत्सव हो, संस्कार हो, अनुष्ठान सम्पन्न किया जाने वाला...

अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है- कटारमल सूर्य मंदिर

रनीश एवं हिमांशु साह कटारमल का सूर्य मंदिर-उत्तर भारत की मध्य कालीन वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। अल्मोड़ा नगर से 13 किमी की दूरी पर बसे कोसी कस्बे से डेढ़़ किमी0 की पैदल चढ़ाई चढ़ कर अथवा कोसी बाजार से लगभग दो किमी आगे से मोटर मार्ग से भी कटारमल पहॅुचा जा सकता है जहां एक टीले पर सूर्य मंदिर...

रंगवाली का पिछौड़ा

एक दुल्हन के लिए कुमाऊं में पिछौड़े का वही महत्व है जो एक विवाहित महिला के लिए पंजाब में फुलकारी का, लद्दाखी महिला के लिए पेराक या फिर एक हैदराबादी के लिए दुपट्टे का है। यह एक शादीशुदा मांगलिक महिला के सुहाग का प्रतीक है और परम्परा के अनुसार उत्सवों , सामाजिक समारोहों और धार्मिक अवसरों पर प्रायः...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का रामशिला मंदिर

अल्मोड़ा नगर के अति प्राचीन देवालयों में रामशिला मंदिर का स्थान पहला है। अल्मोड़ा की बसासत के दूसरे चरण के अन्तर्गत राजा रूद्रचंद के कार्यकाल में वर्ष 1588-89 में एक नये अष्ट पहल राजनिवास का निर्माण नगर के मध्य में करवाया गया था जो मल्ला महल कहलाता था। इसी मल्ला महल के केन्द्र में रामशिला मंदिर...

सारदा मठ, कसारदेवी-अल्मोड़ा

हिमालय की भारत के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। स्वामी विवेकानंद तो हिमालय की इस आध्यामिक भूमिका के हमेशा ही प्रशंसक रहे। उन्होने कुमाऊँ हिमालय की चार बार यात्रायें की। अल्मोड़ा पर तो वे...

आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है कसार देवी- कालीमठ पर्वत श्रृंखला

कसार देवी-कालीमठ पर्वत श्रृंखला घने वृक्षों से आच्छादित प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक शांतिप्रद रमणीक स्थल है जो ज्ञान की तलाश कर रहे साधकों को बर्बस अपनी ओर आकर्षित करता है। हिमालय की बर्फीली पर्वत श्रृंखलाओं को...

नन्दादेवी मंदिर-अल्मोड़ा

नन्दादेवी परिसर में तीन देवालय विद्यमान हैं । इनमें से दो मंदिर उद्योतचन्देश्वर तथा पार्वतेश्वर मंदिर वास्तुकला की दृष्टि से पुराविदों एवं स्थापत्य में रुचि रखने वालों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र बने हैं । तीसरा...

बालेश्वर मंदिर-चम्पावत

बालेश्वर का मंदिर शिल्प अपने आप में अनोखा है। इसका शिल्प कुमाऊँ में प्राप्त अन्य मंदिरों से अलग है । यह एक संयुक्त मंदिर है जिससे कभी दो मंदिर रहे होंगे जो आच्छादित कर एक दूसरे से जोड़े गये थे । प्रतीत होता है कि...

अद्वितीय सांस्कृतिक विरासत है- कटारमल सूर्य मंदिर

रनीश एवं हिमांशु साह कटारमल का सूर्य मंदिर-उत्तर भारत की मध्य कालीन वास्तुकृतियों में विशिष्ट स्थान रखता है। अल्मोड़ा नगर से 13 किमी की दूरी पर बसे कोसी कस्बे से डेढ़़ किमी0 की पैदल चढ़ाई चढ़ कर अथवा कोसी बाजार से लगभग दो...

कुमाऊँ के भवनों का काष्ठ शिल्प

प्रागैतिहासिक मानव के कदम ज्यो-ज्यों सभ्यता की ओर की बढे उसकी पहली नजर लकड़ी पर पड़ी जो अपनी प्रकृति के कारण मानव आश्रयों के अभिप्राय गढ़ने के लिए कहीं ज्यादा उपयुक्त थी। ज्यों-ज्यों मानव का कला और अलंकरणों के प्रति झुकाव...

अपनी कलाऔर पुरासम्पदा लिए बेजोड़ है बमन सुआल मंदिर समूह

बमन सुआल वैसे तो एक छोटे से गांव का नाम है जो अल्मोड़ा जनपद के पट्टी मल्ला लखनुपुर से 6 किमी की दूरी पर सुआल नदी तथा थमिया के गधेरे के पास स्थित है। लेकिन बमन सुआल गांव में स्थित एकादश रूद्र नाम का प्राचीन मंदिर समूह...

कामदेव भी पूजे जाते थे उत्तराखंड में

भारतीय साहित्य में अनुरागी मन को मथने वाले जिस देवता का उल्लेख है -वह हैं कामदेव। वे तन को सक्रिय रखकर, मन को निरन्तर मथते रहते हैं, इसलिए उनका नाम मन्मथ भी है। वह सभी देवों से पहले उपत्न्न हुए इसलिए उन्हें अग्रजन्मा...

बागनाथ मन्दिर समूह-परम्परा एवं शिल्प

अल्मोड़ा से लगभग 85 किमी. की दूरी पर स्थित तल्ला कत्यूर में गोमती-सरयू के संगम पर बागेश्वर जिले का मुख्यालय बागेष्वर स्थित है । इसे उत्तराखण्ड का प्रयाग भी कहा जाता है । लोकोक्ति हैं कि जिस प्रकार भगीरथ ने गंगा का अवतरण...

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