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डंडेश्वर देवालय जागेश्वर

जागेश्वर मंदिर समूह का प्रसि़द्ध डंडेश्वर देवालय आरतोला से जागेश्वर की ओर जाते हुए, जागेश्वर के मुख्य मंदिर समूह से लगभग एक किमी पहले, जटागंगा तथा दूध गंगा के संगम पर देवदार के घने जगल में है। दंडेश्वर मंदिर जागेश्वर मंदिर समूह का सबसे उंचा मंदिर है। उत्तर भारतीय शैली में निर्मित यह देवालय पूर्वाभिमुखी है। अत्यंत विशाल, भव्य, सुन्दर, सुघड़ एवं दर्शनीय स्वरूप वाला यह देवालय दूर से ही आकर्षित करता है। इस मंदिर के चारो ओर बने नौ मंदिर इसे एक अलग ही देवकुल बनाते हैं।

स्वप्निल सक्सेना

स्थानीय मान्यता है कि शिवलिंग की उत्पत्ति सर्वप्रथम इसी स्थान पर हुई थी। इसे एखर देवाल भी कहा जाता है। यहां स्थापित लिंग-युग्म लिंग है। लिंग पूजन के रूप में इस मंदिर में एक स्वंय भू शिवलिंग प्राकृतिक चट्टान है। इस शिला को ही लोग शिवलिंग के रूप में पूजते हैं तथा जलाभिषेक करते हैं। दंडेश्वर आने वाले भक्तजन मनोकामना पूर्ती के लिए पार्थिव पूजन एवं पुत्र प्राप्ति के लिए अखंड ज्योति अनुष्ठान भी करते हैं।

स्वप्निल सक्सेना

जागेश्वर मंदिर की ही तरह इस मंदिर का शिखर भी तीन चरणों में उपर उठाकर शिवत्रिमूर्ति तथा कीर्तीमुख से सजाया गया है। नीचे की ओर देवालयों की आकृति हैं। रेखीय शिखर इसे जागेश्वर के अन्य नागर शैली के देवालयों से भिन्नता प्रदान करता है। शिखर पर काष्ठ निर्मित विशाल बिजौरा शोभायमान है। इस मंदिर की भव्य एवं विशाल शुकनास भी दर्शनीय है। हिमवान शैली का यह मंदिर आठवीं- नवीं शती में बना है। हिमवान शैली की विशेषता है-मुख्य मंदिर परिसर में मूल देवता के साथ सम्पूर्ण देव परिवार के मंदिर स्थापित किये जाते हैं । मूलदेवता का मंदिर विशाल होता है जबकि देव परिवार के मंदिर छोटे और विभिन्न आकार प्रकार के बनाये जाते हैं।

एक मान्यता यह भी है कि मंदिर को आदि शंकराचार्य की परम्परा के डांडी सन्यासियों ने स्थापित किया था। इसकी परिधि में कुबेर तथा चंडिका मंदिर स्थापित हैं।

बताया जाता है कि पौण राजा की दुर्लभ प्रतिमा इसी मंदिर में स्थापित थी। जिसे बाद में तस्करों ने चुरा लिया था। यह प्रतिमा वर्तमान में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जागेश्वर संग्रहालय में प्रदर्शित की गयी है। इस मंदिर में और भी कई प्रतिमाऐं थीं जिन्हें भी संग्रहालय मेे ही प्रदर्शित किया गया है। मंदिर आठवीं से नवीं शती के मध्य निर्मित जान पड़ता है।

देवकुल शैली वाला यह मंदिर प्रशासनिक दृष्टि से धौलादेवी विकासखंड की कोटली तथा चंढ़ोक गूंठ ग्राम पंचायत के अन्तर्गत आता है। इस मंदिर को जागेश्वर मंदिर समूह का अभिन्न अंग माना जाता है। जागेश्वर मंदिर समूह की ही भांति यह मंदिर भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के संरक्षण में है।

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