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दुर्लभ कलानिधि है पोण राजा की प्रतिमा

देश की धातु निर्मित सर्वाेत्तम कलानिधियों एवं प्रतिमाओं का यदि उल्लेख किया जाये तो यह निश्चित है कि कत्यूरियों के आदि पुरूष पोण राजा की धातु निर्मित प्रतिमा देश की सर्वश्रेष्ठ कलानिधियों में शीर्ष पर रहेगी। यह प्रतिमा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के जागेश्वर संग्रहालय में दर्शकों के लिए प्रदर्शित की गई है।

सौजन्य- जागेश्वर संग्रहालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग

कला एवं शैली के आधार पर माना जाता है कि नवीं शती ई0 में निर्मित यह प्रतिमा विश्व की धातु कला की श्रेष्ठतम प्रतिमाओं में से एक है तथा सौन्दर्य एवं निर्माण तकनीक की दृष्टि से देश की दुर्लभ कला निधि है।

धातु निर्मित पोण राजा की प्रतिमा मूल रूप से जागेश्वर के समीप डंडेश्वर मंदिर में स्थापित थी जहां से सुरक्षा की दृष्टि से इसे जागेश्वर मुख्य मंदिर के परिसर में स्थित नवदुर्गा मंदिर में रख दिया गया था परन्तु 1974 के अक्टूबर माह में प्रतिमा मंदिर से चुरा ली गयी तथा तस्करों द्वारा इसे विदेश भेजने की पूरी तैयारी भी की गयी थी। लेकिन इस चेारी के विरूद्ध स्थानीय छात्रों के नेतृत्व में विशाल जन आन्दोलन प्रारम्भ हो जाने पर जन दबाब के चलते मुम्बई के हवाई अड्डे से प्रतिमा को सीबीआई द्वारा बरामद कर लिया गया। कानूनी पचड़ों में फंसे पोण राजा वर्षाे तक सीबीआई के गोदाम में पड़े रहे । न्यायालय के आदेश के बाद 17 अक्टूबर 1989 को इसे सीबीआई ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को सौंप दिया। परन्तु तस्करों द्वारा यह प्रतिमा काफी क्षतिग्रस्त कर दी गयी । इस प्रतिमा का एक हाथ तथा पैर के अलावा पैर की अंगुली को काट दिया गया था। इसलिए भा0पु0स0 ने इसे अपनी प्रयोगशाला में उपचारित कर नवम्बर 2000 मे अन्तिम रूप से इसे जागेश्वर वापस भेज दिया। इस बीच उत्तराखंड पृथक राज्य बनने के बाद पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा उत्तराखंड के लिए पृथक से मंडल इकाई का गठन कर दिया गया । जागेश्वर में संग्रहालय का निर्माण हो जाने पर अत्यधिक महत्व की इस प्रतिमा को वर्ष 2008 में समुचित सुरक्षा में प्रदर्शित करने का निर्णय लिया गया।

पौण राजा की लगभग एक कुंतल वजन की इस प्रतिमा की लम्बाई लगभग 140 सेमी है। प्रतिमा की मुद्रा से प्रतीत होता है कि जैसे मूल रूप में पौण राजा अपने हाथों में दीपक पकड़े हुए होंगे परन्तु अब दीपक हाथ में नहीं है। वह राजसी मुकुट, गले में कंठा, हाथों में बाजुबंध एवं कंगन तथा पैरों में कड़े पहने हैं। धोती धारण किये पोण की यह दिपदिप करती प्रतिमा अत्यंत भव्य है। विद्वानों का मानना है कि जागेश्वर संग्रहालय में प्रदर्शित यह प्रतिमा कत्यूरियों के पूर्वज महाप्रतापी नरेश शालिवाहन की हो सकती है जिसने पोण की पदवीं धारण की थी। इन्हे कत्यूरी राजवंश का आदि पुरूष भी माना जा सकता है। कत्यूरी राजवंश ने इस क्षेत्र में सातवीं से लेकर दसवीं शती के अन्त तक शासन किया है। मान्यता है कि पोण राजा शालिवाहन ने उत्तर भारत के सशक्त कुषाण राजवंश को पराजित करने में अभूतपूर्व पराक्रम दिखाया था। वरिष्ठ इतिहासकार डा0 एम पी जोशी, जिन्होंने क्षेत्र के इतिहास एवं पुरातत्व पर महत्वपूर्ण गवेषणाऐं की हैं, ने उल्लेख किया है कि कत्यूरी नरेश जब-जब संकट से घिर जाते थे तब-तब विपत्ति दूर करने के लिए अपने पूर्वज पोण का आह्वान किया करते थे। इस अनुष्ठान के तहत पोण की प्रतिमा भी मंदिरों में स्थापित की गयी थीं। सम्भवतः इसी लिए पोण की ये प्रतिमायें केवल कत्यूरी मंदिरों कटारमल तथा जागेश्वर में ही मिली हैं।

डा0 जोशी का यह भी मत है कि नवीं एंव सोलहवीं शती में संकट में घिरे कत्यूरी राजवंश द्वारा किसी मनौती या संकट को दूर करने की कामना से पोण राजा का आह्वान किया गया होगा जिसके लिए कटारमल सूर्य मंदिर तथा जागेश्वर में पोण राजा की धातु मूर्तियां स्थापित की गयी होंगी। जागेश्वर में आज भी हाथ में दीपक लेकर संतान प्राप्ति की कामना की पूर्ती हेतु मनौती मांगने की परम्परा है। माना जा सकता है कि कत्यूरी नरेशों द्वारा पोण की यह प्रतिमा अपने वंश को सुरक्षित रखने अथवा किसी अन्य मनोकामना की पूर्ती के लिए स्थापित की गयी होगीं।

इस क्षेत्र में कटारमल सूर्य मंदिर में अष्टघातु तथा जागेश्वर के जागनाथ मंदिर में पोण राजा की चांदी से बनी ऐसी दो धातु प्रतिमाएं और भी थीं जो 1960 के दशक में चोरी चली गयीं। परन्तु ये दोनों आज तक वापस नहीं आ सकी हैं।

पोण राजा की प्रतिमा को जागेश्वर संग्रहालय में सशस्त्र गारद के साथ बुलेट प्रूफ सुरक्षा में आम जनता के दर्शन हेतु प्रदर्शित किया गया है। पिछले लगभग बीस वर्षों में पोण राजा के जागेश्वर संग्रहालय मेे आने एवं सार्वजनिक प्रदर्शन से पर्यटकों की संख्या में इजाफा तो हुआ ही है साथ ही साथ जागेश्वर तीर्थ तथा उसके संग्रहालय का महत्व और भी बढ़ गया है।

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