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लोकदेवता भोलानाथ की तपःस्थली है सिद्ध का नौला

अल्मोड़ा के पल्टन बाजार के प्रारम्भ होते ही सिद्ध नृसिंह मंदिर के सामने सिद्ध बाबा का नौला एवं मंदिर नगर के आस्था के प्रमुख केन्द्रों मे अपना स्थान रखता है। यहां नाथ परम्परा के चंद कालीन सिद्ध संत ऋद्धिगिरी निवास करते थे। सिद्ध बाबा की धूणी इन बाबा की यादगार है। बाबा ऋद्धगिरी को राजा उद्योत चंद (1678-98) का गुरू बताया जाता है। बाबा ऋद्धिगिरी ने उद्योत चंद के समय में ही जागेश्वर में जीवित समाधि ली थी। लोक देवता भोला नाथ ने भी इस स्थान पर निवास किया था।

रनीश एवं हिमांशु साह

चंद कालीन यह नौला परम्परागत निर्माण की तकनीकि से बनाया गया है। वर्तमान में भी यह नौला पलटन बाजार निवासियों के लिए स्वच्छ भूमिगत पेयजल का मुख्य स्त्रोत है। प्रारम्भ में भूमि की सतह से उपर आयी प्राकृतिक जलधारा पोखर के रूप में थी, बाद मे इसे कुंड का रूप दिया गया तथा जल स्त्रोत को सुरक्षित करने एवं जल की पवित्रता को अक्षुण्य रखने के लिए इसे आच्छादित नौले का रूप दिया। नौला परम्परागत संरचनाओं से युक्त है तथा कुंड के उपर बने गर्भगृह एवं अर्धमंडप जैसी संरचनाओं में विभाजित है। वर्तमान में केवल नौले की पटाल वाली छत एवं उत्तर की ओर बने प्रवेश द्वार एवं कुंड का अवलोकन किया जा सकता है। नौले के शीर्ष पर चक्रिका विराजमान है। जलकुंड तक पहुंचने के लिए सीडि़यां बनाई गई हैं। मान्यता है कि कभी भोलानाथ ने चिमटे के प्रहार से इस स्थान पर जल प्रकट किया था। कुंड में चिमटे की निशान होने की पुष्टि स्थानीय निवासियों ने की है। श्री हेम थापा एवं श्री पन्नालाल कनौजिया ने बताया है कि इस नौले के बगल से ही एक पतली सुरंग बनी है। इस सुरंग को बंद कर दिया गया है। सिद्ध नरसिंह मंदिर के सामने से ही नौले एवं मंदिर का प्रवेशद्वार बना है।

रनीश एवं हिमांशु साह

अब इस स्थान को सिद्ध बाबा भोलेनाथ शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है। भोलानाथ को महादेव शिव का अंश एवं कल्याणकारी लोकदेवता कहा गया है । मान्यता है कि उन्होंने अल्मोड़ा में अपने तपोबल से अनेक स्थानों पर भूमिगत जल धाराओं को उत्पन्न कर नगर को जल संकट से मुक्त किया । अल्मोड़ा में वर्तमान में मौजूद अनेक नौले- धारे भोलेनाथ की ही कृपा का फल माने जातें हैं। इसलिए उनकी उपासना जल प्रदान करने वाले लोक देवता के रूप में भी होती है।

भोलानाथ का एक छोटा मंदिर भी बगल में ही बनाया गया है, जहां उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। नौले के बगल में ही धूणी है जहां उन से मनौतियां मांगी जाती हैं। श्रद्धालु कष्टोें को दूर करने के लिए घरों में जागर लगाकर उनका आव्हान करते हैं। उनके लिए उचैण रखा जाता है। अनेक परिवारों में पौष माह में पड़ने वाले रविवारों को यहां श्रद्धा से रोट-भेंट अर्पित की जाती है। इतिहासकार मानते हैं कि नगर की रक्षा करने वाले अष्ट भैरव की स्थापना का सम्बन्ध भी भोलानाथ के कथानक से जुड़ा है।

इस स्थान पर भोलानाथ के निवास की कथा न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है अपितु ऐतिहासिक भी है जिसकी पुष्टि राजा ज्ञानचंद के समय लिखे गये प्रसिद्ध ऐतिहासिक संस्कृत खंड काव्य ग्रंथ कल्याण चन्द्रोदय से होती है। भोलानाथ चंदवशीय राजा बाजबहादुर चंद के पोते एवं उद्योतचंद के कनिष्ठ पुत्र हरिचंद थे जिन्होेंने सन्यास ले लिया था। सन्यास की मूल प्रक्रिया में गृह भिक्षा लेने के उद्देश्य से अल्मोड़ा आने पर वे यहीं नोैले के समीप धूणी स्थल पर ठहरे थे जहां राजदरबार के एक षड़यंत्र में उनकी तथा उनके प्रति आस्था रखने वाली साध्वी तथा उसके अजन्में शिशु की हत्या कर दी गई थी।

लोकविधाओं के मर्मज्ञ स्व0 ब्रजेन्द्र लाल साह ने अपनी पुस्तक श्री भोलानाथ चरितम् में ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर इस घटना का विस्तृत वर्णन उपलब्ध करवाया है। हत्या का यह घृणित कृत्य पूस माह के रविवार को हुआ था इसलिए पूस माह के रविवार को उनको रोट-भेंट अर्पित करने की परम्परा है। भोलानाथ के सिर को जिस स्थान पर गाढ़ा गया तथा भोलानाथ के प्रति आस्थावान महिला एवं अजन्मे शिशु की हत्या कर शवो को भूमिगत किया गया उस स्थान पर अब पल्टन बाजार का बटुक भैरव मंदिर है। नगर एवं नगर के बाहर भोलेनाथ के शरीर के आठ अंग जिन स्थानों पर भूमि में दबाये गये बाद में उन स्थानों पर अष्ट भैरव मंदिरों की स्थापना की गई।

रनीश एवं हिमांशु साह

नौले के पास ही में पीछे की ओर बीरखम्ब, देवी तथा प्रणाम मुद्रा में किसी राजपुरूष की खंडित प्रतिमाऐं रखीं हैं। धूणी मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ो श्रद्धालु आकर सिद्धबाबा तथा भोलानाथ के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। भोलानाथ के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए यहां प्रतिवर्ष बुद्ध पूर्णिमा को जन सहयोग से सामूहिक भंडारे की भी व्यवस्था होती है।

यह स्थान व नौला रक्षा मंत्रालय की भू सम्पत्ति है। छावनी परिषद विशेष अवसरों पर सफाई इत्यादि की व्यवस्था देखती है। जन सहयोग से प्रतिदिन धूणी मंदिर व नौले की व्यवस्थायें की जाती है

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