उत्तराखंड के पुरातत्व की गौरव गाथा

मनीषियों द्वारा प्रतिपादित हिमालय के पांच भागों नेपाल, कूर्मांचल, केदार, जलंधर तथा कश्मीर में से दो केदार तथा कूर्मांचल को मिलाकर ही वर्तमान का उत्तरांचल राज्य बना है। पी0 बैरन ने वांडरिंग्स इन द हिमाल में इस पर्वतीय क्षेत्र को हिन्दुओं का यरूशलम तथा पैलेस्टाइन माना है। उत्तराखंड भौगोलिक दृष्टि से...

हरेला पर्व : सुघड़ हाथों की करामात हैं – डिकारे

कुमाउनी जन जीवन में भित्तिचित्रों के अतिरिक्त भी महिलाएँ अपनी धार्मिक आस्था के आयामों को माटी की लुनाई के सहारे कलात्मक रूप से निखारती हैं। हरेला के त्योहार पर, जो प्रतिवर्ष श्रावण माह के प्रथम दिवस पड़ता है, बनाये जाने वाले डिकारे सुघड़ हाथों की करामात हैं जिसमें शिव परिवार को मिट्टी की आकृतियों...

सिद्ध शिवालय है अल्मोड़ा का बेतालेश्वर मन्दिर

बेतालेश्वर के नाम से प्रसिद्ध उत्तराखंड का सिद्ध बेतालनाथ शिव मंदिर अल्मोड़ा नगर के बेस चिकित्सालय से विकास भवन की ओर जाने वाले सड़क मार्ग पर नगर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस सड़क मार्ग से मंदिर की पैदल दूरी 250 मीटर है। मंदिर की विभिन्न दिशाओं में भनार गूंठ, रखोली, बाड़ी...

हिमालय में प्रसारित प्रथम मुद्रायें हैं कुणिंद सिक्के

अल्मोड़ा का राजकीय संग्रहालय अपनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों के कारण इतिहासविदों, मुद्रा शास्त्रियों एवं पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। यहां प्रदर्शित दुर्लभ कुणिन्द मुद्रायें केवल अल्मोड़ा, शिमला (हिंमाचल प्रदेश) तथा ब्रिटिश म्यूजियम में ही हैं। प्रारम्भ में कुणिन्दों की मुद्रायें केवल अल्मोड़ा...

सिस्टर निवेदिता की स्मृतियां संजोये है अल्मोड़ा का निवेदिता काॅटेज

स्वामी विवेकानंद की प्रथम विदेशी शिष्या सिस्टर निवेदिता को कौन नहीं जानता। लेकिन बहुत ही कम लोग जानते हैं कि सिस्टर निवेदिता को भारतीय ध्यान साधना और उसके अनुसरण की प्रक्रिया का ज्ञान स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में ही दिया था। सिस्टर निवेदिता ने अल्मोड़ा के जिस भवन मे में प्रवास किया उसे आज...

कुमाऊँ के देवालय – निर्माण तथा परिरक्षण

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र में प्राचीन मंदिरोंके निर्माण की परम्परा लगभग सातवीं शती से निरन्तर पल्लवित होती रही है। इस क्षेत्र में मंदिर निर्माण क्रमानुसार लकड़ी, ईंट तथा मजबूत पत्थरों इत्यादि से हुआ। लकड़ी की प्रकृति दीर्घजीवी न होने के कारण काष्ठ निर्मित मंदिरों के निर्माण की परम्परा का अवसान...

शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है स्यूनराकोट का नौला

शोभित सक्सेना अल्मोड़ा जनपद के महत्वपूर्ण नौलों में से स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है। अल्मोडा से कौसानी जाने वाले मार्ग पर कोसी से आगे चल कर पक्की सड़क मुमुछीना गांव तक जाती है जहां से मात्र आधा किमी की दूरी पर पन्थ्यूड़ा ग्राम है। इसी गांव में यह नौला स्थित है। उत्तराभिमुख यह...

ऐतिहासिक है अल्मोड़ा का रामशिला मंदिर

अल्मोड़ा नगर के अति प्राचीन देवालयों में रामशिला मंदिर का स्थान पहला है। अल्मोड़ा की बसासत के दूसरे चरण के अन्तर्गत राजा रूद्रचंद के कार्यकाल में वर्ष 1588-89 में एक नये अष्ट पहल राजनिवास का निर्माण नगर के मध्य में करवाया गया था जो मल्ला महल कहलाता था। इसी मल्ला महल के केन्द्र में रामशिला मंदिर...

कुमाऊँ में होली गायन

ऋतुराज बसंत के आगमन और फागुन के प्रारम्भ होते ही उत्तर भारत में सर्दी का खुशनुमा मौसम उमंग भरे दिलों में मीठी सिहरन भर देता है । ऋतुराज बसंत फूलों की मादकता से मानव मन को रंग डालते हैं । फगुनाहट के परिवेश में होली पर्व...

शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है स्यूनराकोट का नौला

शोभित सक्सेना अल्मोड़ा जनपद के महत्वपूर्ण नौलों में से स्यूनराकोट का नौला शिल्प की दृष्टि से सिरमौर है। अल्मोडा से कौसानी जाने वाले मार्ग पर कोसी से आगे चल कर पक्की सड़क मुमुछीना गांव तक जाती है जहां से मात्र आधा किमी...

रोपाई आयोजन – हुड़किया बौल

पर्वतीय क्षेत्रों की दुर्गम भूमि को उर्वरा करने के लिए यहाँ की महिलाओं ने अत्यधिक श्रम से धरती को सींचा है। दुर्जेय पर्वत मालाओं के बीच रमणीय घाटियों में धान की सुनहली बालियों के खेत दूर से आकर्षित तो जरूर करते हैं...

स्याल्दे बिखौती का मेला

अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट कस्बे में सम्पन्न होने वाला स्याल्दे बिखौती का प्रसिद्ध मेला प्रतिवर्ष वैशाख माह में सम्पन्न होता है । हिन्दू नव संवत्सर की शुरुआत ही के साथ इस मेले की भी शुरुआत होती है जो चैत्र मास की अन्तिम...

दर्शनीय है पाताल भुवनेश्वर

डीडीहाट तहसील से गंगोलींहाट कस्बे से ११ किमी. की दूरी पर पट्टी तल्ला बडाऊँ माना डीडीहाट क्षेत्र से पाताल भुवनेश्वर नामक ग्राम है । इस गांव में एक प्राचीन दर्शनीय गुफा भूगर्भ के अन्दर है । भूगर्भ के अन्दर की वृहदाकार...

कुमाऊँ की आराध्य देवी हैं – हाट कालिका गंगोलीहाट

यूँ तो कुमाऊँ का कण-कण सौन्दर्य से परिपूर्ण है लेकिन कुछ स्थल ऐसे भी हैं जहा जाकर मन सम्मोहन की सीमा में पहुंच जाता है । पिथौरागढ जनपद के गंगोलीहाट कस्बे का काली मंदिर इनमें से एक है । गंगोली कस्बे की खूबसूरत घाटी में...

bagwal devidhura

बगवाल

देवीधुरा में वाराही देवी मंदिर के प्रांगण में प्रतिवर्ष रक्षावन्धन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को पत्थरों की वर्षा का एक विशाल मेला जुटता है । मेले को ऐतिहासिकता कितनी प्राचीन है इस विषय में मत-मतान्तर हैं । लेकिन आम...

हिमालय में प्रसारित प्रथम मुद्रायें हैं कुणिंद सिक्के

अल्मोड़ा का राजकीय संग्रहालय अपनी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों के कारण इतिहासविदों, मुद्रा शास्त्रियों एवं पर्यटकों का आकर्षण बना हुआ है। यहां प्रदर्शित दुर्लभ कुणिन्द मुद्रायें केवल अल्मोड़ा, शिमला (हिंमाचल प्रदेश) तथा...

इंडो-यूरोपियन शैली की विरासत है-अल्मोड़ा का नार्मल स्कूल

अल्मोड़ा। एक शती पूर्व कुमाऊँ मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से अल्मोड़ा नगर में स्थापित किये गये इंडो-यूरोपियन शैली में निर्मित नार्मल स्कूल की इमारत दरकने लगी हैं। यह भवन अब अत्यधिक जीर्ण...

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