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महाकवि टैगोर के प्रवास का प्रतीक है टैगोर हाउस

छावनी क्षेत्र में निर्मित एवं देवदार के वृक्षों से आच्छादित गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर के अल्मोड़ा प्रवास का साक्षी टैगोर हाउस आज भी अल्मोड़ा नगर की सबसे भव्य और विशाल इमारतों में से एक है। सूर्यास्त का इतना विहंगम दृश्य कम ही स्थानो से देखने को मिलता है।

शोभित सक्सेना

लगभग दो सौ वर्ष पुरानी टैगोर हाउस की इमारत को वर्ष 1961 से पहले बंगला न 5सैंट मार्क्स हाउस के नाम से जाना जाता था । अभिलेखों से पता चलता है कि भवन वर्ष 1815 के फौरन बाद बना था जिसको छावनी परिषद द्वारा वर्ष 1917 में खरीदा गया था। वर्तमान में इस भवन में छावनी परिषद अल्मोड़ा का कार्यालय है।

गुरूदेव की स्मृतियों को सजीव रखने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के अनुरोध पर रवीन्द्र शताब्दी वर्ष 1961 में छावनी परिषद ने गुरूदेव के इस स्थान पर ठहरने की याद में एक पीतल का स्मृति चिन्ह लगाया तथा परिषद ने अपने प्रस्ताव में संकल्प किया कि सेंट
माक्र्स हाउस को भविष्य में टैगोर हाउस के नाम से जाना जायेगा। कवि जिस सोफे का
प्रयोग करते थे छावनी परिषद ने उसे सुरक्षित रखा है।

स्वप्निल सक्सेना

विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के संस्थापक स्व0 बोसीसेन के आग्रह पर
गुरूदेव रविंद्र नाथ टैगोर 1937 में अल्मोड़ा दो माह के लिए आये थे। महाकवि ने 1937 की मई-जून में अल्मोड़ा प्रवास के दौरान इसी बंगले में निवास किया था। छावनी परिषद के रिकार्ड बताते हैं कि तब उनके साथ उनकी बेटी रथी तथा पुत्रवधू प्रतिमा भी यहां आयी थी।

इस भवन में गुरूदेव ने अपनी अनेक कृतियों की रचना की तथा अल्मोड़ा एवं प्रकृति से सम्बन्धित अनेक चित्र भी बनाये। सेजूति, नवजातक, आकाश प्रदीप, छडार कवि जैसी अनेक चर्चित कविताओं तथा विश्व परिचय नामक ग्रंथ की रचना उन्होने यहां की। कवि ने स्थानीय प्राकृतिक दृश्यों के कई चित्र भी बनाये।

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