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रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा

रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा रामकृष्ण परमहंस परम्परा के सन्यासियों के लिए स्थापित आध्यात्मिक
रिट्रीट सेंटर है। रामकृष्ण मठ तथा रामकृष्ण मिशन बेलूर मठ कोलकाता द्वारा संचालित यह
केन्द्र अब एक सौ वर्ष से भी अधिक प्राचीन हो चुका है।

रीना हिमांशु साह

अल्मोड़ा नगर के दक्षिण छोर पर ब्राइट एंड कार्नर में निर्मित इस स्थान से लुभावनी
हिमाच्छादित हिमालय पर्वत माला का नैसर्गिक और मनोहारी दृश्य दिखाई देता है।
रामकृष्ण परम्परा के साधुओं और भक्तों के लिए यह एक ऐसा गंतव्य है जहां
आध्यात्मिक सुखों की प्राप्ति और जीवन की सरलता तथा निश्चलता तो प्राप्त होती ही है
स्वामी रामकृष्ण परमहंस एवं मां सारदा के प्रति समर्पित भक्त कुछ समय के लिए शारीरिक
और मानसिक विश्रांति के साथ अल्मोड़ा नगर में स्वामी जी से सम्बन्धित स्थानों के दर्शन
करने तथा विशुद्ध आध्यात्मिक जीवन जीकर नई उर्जा प्राप्ति के लिए आते हैं।
विश्वास है कि यहां के आध्यात्मिक जीवन और वातावरण से ओतप्रोत होने के कारण
उनको स्वामी रामकृष्ण परमहंस, मां सारदा और स्वामी विवेकानंद का पवित्र आशीर्वाद भी
प्राप्त होता है।

वर्ष 1897 की अल्मोड़ा यात्रा के समय सार्वजनिक अभिनंदन में स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि यदि धार्मिक भारत के इतिहास से हिमालय को निकाल दिया जाये
तो उसका स्वरूप अत्यंत अल्प हो जायेगा। उन्होनें अपने अनुयायियों ने कहा था कि उन्होंने
हिमालय में एक ऐसा आश्रम स्थापित करने का सपना देखा है जहाँ प्रकृति स्वयं एक
समर्पित साधक की ध्यान में सहायता करती है, जहां ध्यान करने के लिए प्रयास करने
की आवश्यकता नहीं होती, यह स्वतः ही सम्पन्न होने लगता है। यह केंद्र केवल
धर्म प्रधान नहीं होगा अपितु यहां निस्तब्धता, ध्यान तथा शांति की प्रधानता होगी।
अपने अभिन्न मित्र लाला बद्रीसाह ठुलघरिया को ऐसे स्थान की खोज के
लिए स्वामी जी ने पत्र भी लिखा था। यह पत्र लाला बद्रीसाह के पौत्र गिरीश साह
के पास आज भी मौजूद है।

लेकिन दुर्भाग्य से स्वामी जी के जीवन काल इस आश्रम की स्थापना न हो सकी।
स्वामी जी की वर्ष 1902 में असमय मृत्यु हो गई। उनके सपने को उनके दूसरे गुरू
भाइयों ने साकार करने का बीड़ा उठाया। विशेष रूप से स्वामी शिवानंद
और स्वामी तुरियानंद ने। ये दोनों स्वामी रामकृष्ण परमहंस के प्रत्यक्ष शिष्य
थे। उन्होंने इस आश्रम के निर्माण के लिए जगह की तलाश करने के लिए प्रयास किये।
उनके परिश्रम ने आखिरकार ब्राइट एंड कॉर्नर में स्वामी जी के सपने को साकार
कर दिया और एक रामकृष्ण कुटीर नामक इस भव्य आश्रम ने जन्म लिया।

रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा द्वारा प्रकाशित फोल्डर में उल्लेख किया गया है कि इस स्थान पर
आश्रम का लोकार्पण 22 मई 1916 को स्वामी तुरियानंद द्वारा किया गया।
स्वामी तुरियानंद के कार्यकाल के दौरान साधकों के लिए चार कमरे, कर्मचारियों के लिए एक कमरा
और स्नानघर आदि का निर्माण ही हो सका। परन्तु बाद में आगन्तुकों की संख्या बढ़ने के साथ ही
विश्राम कक्षों की संख्या बढ़ती गई। रामकृष्ण परम्परा के प्रमुख सन्यासियों के नाम
पर इन कक्षों का नामकरण किया गया।

इनमें शारदा कुटीर, ब्रह्मानंद कुटीर, प्रेमानंद कुटीर, अद्भुतानंद कुटीर, तुरीयानंद
पुस्तकालय का निर्माण हुआ। परिसर में ही एक समृद्ध पुस्तकालय एवं वाचनालय भी है। आश्रम परिसर में स्वामीजी की एक भव्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

अब इस स्थान पर स्वामी रामकृष्ण परम्परा के सन्यासी एवं भक्त ध्यान एवं विश्रांति
के लिए आते हैं। आश्रम स्थानीय सामाजिक कार्याें में भी अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
गरीब मेधावी छात्रों की सहायता करने में भी यह केन्द्र अग्रणीय है।
दैनिक आरती के अतिरिक्त आश्रम में स्वामी रामकृष्ण परमहंस, मां सारदा तथा स्वामी
विवेकानंद की जयन्ती पर भव्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं।

स्वामी तुरियानंद और रामकृष्ण मिशन के सन्यासी साधकों ने
इस कुटीर के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया है। वर्तमान अध्यक्ष स्वामी ध्रुवेशाशानंद
हैं जिन्होंने अध्यक्ष की जिम्मेदारी वर्ष 2018 से संभाली है।

हाल ही में प्रदेश सरकार ने स्वामी जी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के लिए
ब्राइटन कार्नर का नाम परिवर्तित कर विवेकानंद कार्नर कर दिया है।

आश्रम को जाने वाले रास्ते पर सड़क के किनारे स्वामी जी की एक भव्य प्रतिमा भी स्थापित की गई है। जिसके समीप बैठकर नैसर्गिक सौन्दर्य का भी आनंद लिया जा सकता है।

( रामकृष्ण कुटीर द्वारा प्रकाशित फोल्डर के आधार पर आलेख )

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