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आध्यात्मिक ऊर्जा का केन्द्र है कसार देवी- कालीमठ पर्वत श्रृंखला

कसार देवी-कालीमठ पर्वत श्रृंखला घने वृक्षों से आच्छादित प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण एक शांतिप्रद रमणीक स्थल है जो ज्ञान की तलाश कर रहे साधकों को बर्बस अपनी ओर आकर्षित करता है। हिमालय की बर्फीली पर्वत श्रृंखलाओं को निहारने एवं आध्यात्मिक शांति की तलाश में जब-तब विश्व प्रसिद्ध चिन्तक कालीमठ पर्वत श्रृंखला का रूख करते हैं।

थ्रीश कपूर

यह विख्यात पर्वत श्रृंखला अल्मोड़ा से बिंसर जाने वाले मार्ग पर लगभग 1600 मीटर की ऊँचाई पर प्रारम्भ हो जाती है। यहाँ से अल्मोड़ा , हवालबाग घाटी एवं लगभग 400 किमी विस्तृत हिममंडित पर्वत श्रृंखलायें जो आपि पर्वत से प्रारम्भ होकर हिमांचल प्रदेश के बंदरपूंछ तक फैली हैं , के दर्शन किये जा सकते हैं। नंदादेवी, चौखम्बा, नीलकण्ठ त्रिशूल, पंचाचूली आदि की पर्वत मालाओं के अद्भुत एवं विहंगम दृश्यों को भी यहां से निहारा जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध पर्वत इस श्रृंखला को क्रैंक रिज के नाम से भी जाना जाता है। कई घंटे एकांतता में भी बिताने के लिए कालीमठ एक आदर्श स्थल है। आध्यात्मिक चिंतकों ने कालीमठ तथा कसार देवी क्षेत्र को आध्यात्मिक ऊर्जा का आदर्श केन्द्र कहा है।

अपने सौंदर्य के लिए विख्यात यह हिमालयी श्रृंखला सदियों सें साहित्यकारों, लेखकों दार्शनिकों एवं आध्यात्म में रूचिं रखने वाले चिंतकों को लुभाती रही है। मानसखंड में इस पर्वत माला को काषाय पर्वत कहा गया है। अल्मोड़ा में जब बसासत प्रारम्भ होने के निश्चित प्रमाण भी नहीं मिले थे तब भी यह समूचा पर्वत मानवीय कदमों की आंहट से ओतप्रोत था। हो सकता है कि है प्रागैतिहासिक मानव का विचरण भी इस क्षेत्र में रहा हो। सदियों पूर्व के शैलचित्र आज भी कसारदेवी वन क्षेत्र में विद्यमान हैं। चट्टानों पर मिले कपमार्क प्राचीन मानवीय गतिविधियों की पुष्टि करते हैं। विद्वानों ने यहां से जीवाश्म खोजने का भी उल्लेख किया है।

कसार देवी मंदिर के नजदीक ही छटी शती पूर्व का एक शिलालेख भी विद्यमान है जिसमें लिखा गया है कि वेतला पुत्र रूद्रक ने महादेव को स्थापित किया। इस लेख से इस धारणा की पुष्टि भी होती है कि लगभग 14 सौ वर्ष पूर्व यहां मंदिर स्थापित करने की परम्परा निश्चित रूप से प्रारम्भ हो चुकी थी। पंडित बद्रीदत्त पाण्डे ने कुमाऊँ के इतिहास में उल्लेख किया है कि कलमटिया पर्वत में चंद राजाओं का शस्त्रागार था तथा एक विद्वान ब्राह्मण ने यहां लकड़ी की जगह लोहे की छड़ों से ही होम कर दिया था इसी लिए इस स्थान का नाम कालीमठ पड़ गया। कालीमठ तथा इसके आस पास का इलाका 1920 के दशक से 1960 के दशक के मध्य कई प्रख्यात पाश्चात्य विद्वानों का बसेरा रहा। उस समय कालीमठ-कसार देवी का इलाका अनेक चित्रकारों, लेखकों तथा आध्यात्मिक चिंतकों के लिए एक स्थायी आवास बन गया था।

इस स्थान को क्रैंक रिज नाम 1960 में मिला जब हावर्ड के एसिड गुरू के नाम से विख्यात लेखक, मनोचिकित्सक तथा भविष्यवक्ता टिमोथी लेयरी ने 1960 के दशक में हिप्पी आन्दोलन के उत्कर्ष के दिनों में यहाँ निवास किया। यह पर्वत चोटी तिब्बती बौद्ध ग्रंथों के मार्गदर्शी अनुवादक डब्लू वाई इवेंस वैंज, बौद्ध धर्म के विद्वान-लामा आंगरिक गोंविदा एवं उनकी पत्नी ली गौतमी , प्रसिद्ध अमेरिकी चित्रकार अर्ल बूस्टर तथा उनकी पत्नी अक्शाह, जान ब्लोफेड, रहस्यमय चिंतक अलफ्रेंड सोरेसन का प्रमुख निवास रहा है। स्वामी विवेकानंद, नीब करोरी बाबा एवं मां आनंदमयी भी यहां पधारी थीं। लामा गोविन्दा ने कसारदेवी मंदिर के समीप बौद्ध साधना केन्द्र की स्थापना को मूर्त रूप दिया। इस स्थान की आध्यात्मिक ऊर्जा से प्रभावित होकर बौद्ध विषयों के विद्वान डब्लू वाइ इवांस बैंज ने इसे अपने निवास के लिए चुना था। वे बुक ऑफ डैड नामक प्रसिद्ध पुस्तक के रचियता थे।

स्वप्निल सक्सेना

विख्यात बौद्ध विद्वान लामा आंगरिक गोविन्दा का निवास स्थान भी यही आश्रम रहा है। लामा गोविन्दा मूल रूप से जर्मन थे। बाद में बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। उनकी पत्नी ली गौतमी भी उन्हीं की तरह विद्वान थीं। लामा गोविन्दा एवं ली गौतमी को तिब्बती बौद्ध ग्रंथों का मार्गदर्शी अनुवादक माना जांता है। उन्होंने आर्य मैत्रेय मंडल की स्थापना की थी। यहाँ रह कर उन्होंने तिब्बत की रहस्मय योग साधना पर अनेक हस्तलिखित पुस्तकों का अनुवांद कर प्रकाशित किया। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक द वे आफ व्हाइट क्लाउड ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्रदान की थी।

कपमार्क

कसार देवी बौद्ध आश्रम बौद्ध धर्म अनुयायियों की कग्युग शाखा का उत्तराखण्ड में स्थापित सबसे प्राचीन मठ है जिसे विधिवत सन् 1968 में प्रारम्भ किया जा सका। इस आश्रम को इवांग छोंग कोटलिंग डिगुग कग्यूत के नाम से भी जाना. जांता है। यहां प्रदान जाने वाली उच्च स्तरीय आध्यात्मिक शिक्षा के कारण विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी इस केन्द्र में आते हैं। आश्रम के स्थान को बाद में गुरू लामा रिंगझेन ने लामा गोविन्दा से प्राप्त किया । उनकी पत्नी सोनम छोटुम ने परम्परा को जारी रखते हुए इस केन्द्र का विकास बौद्ध मठ एवं अन्तर्राष्ट्रीय ध्यान केंद्र के रूप में किया। इस केन्द्र में ध्यान करने के लिए किसी भी धर्म के व्यक्ति निशुल्क प्रवेश ले सकते हैं।

स्वप्निल सक्सेना

अमेरिका चित्रकार अर्ल हेनरी ब्रूस्टर वर्ष 1935 से कालीमठ में अपनी पत्नी अंक्शा बालों के साथ निवास करने लगे थे। यहाँ वे मृत्युपरान्त 1957 तक रहे। उन्होंने यहाँ रहकर सैकड़ों ऐसे चित्र बनाये जिन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिली। चित्रकार के अतिरिक्त उन्होंने- यहाँ विश्व प्रसिद्ध साहित्यकारों के साथ सम्मिलित रूप से दो पुस्तकें भी लिखीं। इनमें लाइफ आफ गौतम- द बुद्ध बहुत चर्चित रही । जान इ सी ब्लोफेड एशियाई विचारों के एक अंग्रेज लेखक थे जिन्होंने चीनी बौद्ध दर्शन पर नई गवेषणायें की थीं। उन्होंने भी इस क्षेत्र में लम्बा प्रवास किया।

वर्ष 1960 एवं 1970 के दशक में आधुनिक विचारों के प्रसार के लिए प्रसिद्ध नोबल पुरूस्कार से सम्मानित, साहित्यकार एवं संगीतज्ञ बाब डायलन तथा कैट स्टीवंस भी यहाँ आये थे। 1962 में अमेरिकी कवि एलन गिंजबर्ग तथा पेटर आरलोवस्की लामा गोविन्दा के मेहमान बने। एलन ने लिखा है कि अन्य स्थलों की तुलना में अल्मोड़ा सहज सुलभ तथा कहीं ज्यादा आध्यात्मिक है। बाद में टिमोथी लैरी, रिचर्ड एलपर्ट तथा राफ भी यहाँ आये और उन्होंने अपने अनुभव लिखे। स्काटिश मनोचिकित्सक आर डी लैंग ने यहां रह कर अपने अनुभवों को लिखा । बौद्ध विद्वान, अनेक पुस्तकों के अनुवादक एवं कोलम्बिया विश्व विद्यालय के भारत-तिब्बत बौद्ध दर्शन के प्रोफेसर आर ए एफ थर्मन ने भी वर्ष 1971 में 6 माह लामा गोविन्दा के साथ अध्ययन में बिताये। रहस्यमय चिन्तक एल्फ्रेडा सोरेसन शून्यता भी यहाँ काफी समय तक रहे। शून्यता की यादगार के रूप में यहाँ आज भी उनका स्मारक बना हुआ है।

अमेरिकी फिल्मों की विश्व प्रसिद्ध कलाकार उमा थर्मन के बचपन का काफी समय यहां बीता। यह भी उल्लेख है कि इस स्थान पर स्वामी विवेकानंद एवं बाबा नीब करोरी भी आये थे।

विद्वानों का मत है कि स्कन्द पुराण के मानस खंड में जिस काषाय पर्वत का उल्लेख है वह कसार देवी पर्वत ही है। इस पर्वत शिखर पर शिव को समर्पित प्राचीन मंदिर भी है। एक अन्य मंदिर कौशिकी देवी का है जिसका ल़क्ष्मी नारायण बिड़ला ने जीर्णाेद्धार करवाया था। स्वामी विवेकानंद का सपना था कि हिमालय में भारत की नारी शक्ति के आध्यामिक उन्नति के लिए एक मठ की स्थापना की जाये। वर्ष 1998 में मंदिर के समीप ही सारदा मठ की स्थापना कर स्वामी जी के सपनों को साकार किया गया है।

विश्व प्रसिद्ध पुस्तक द लास्ट टीचिंग आफ लामा गोविन्दा का सृजन भी इसी पर्वत श्रृंखला में हुआ। नृत्य सम्राट उदयशंकर इस पर्वत श्रृंखला के सौंदर्य से इतना अभिभूत हुए थे कि वे सिमतोला में अपना नाट्य केंद्र ही स्थापित करना चाहते थे।

वैज्ञानिकों के एक मत के अनुसार अल्मोड़ा-कालीमठ पर्वत श्रृंखला वेन एलन नामक बेल्ट के भ्रंश के प्रभाव क्षेत्र पर स्थित है। जिसके कारण पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र यहां ऊर्जा का एक केंद्र बना देता है। चाल्र्स ब्रनर के अनुसार जो इस ऊर्जा से सातत्य बना पाते हैं उनके लिए यह आध्यात्मिक उत्थान का प्रबल साध्य बन जाती है जो लोग इस ऊर्जा से सातत्य नहीं बना पाते वे इस ऊर्जा के कारण असुविधा का अनुभव करते हैं। जर्मनी तथा कालीमठ के अतिरिक्त ऐसा विश्व के किसी अन्य स्थान पर अनुभव किया जाना कठिन है।

कालीमठ-कसार देवी का यह क्षेत्र ऊर्जा तथा मनमोहक सौंदर्य के कारण ही दशकों से साधकों के साथ-साथ पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र बना हुआ है। ज्ञान की तलाश कर रहे साधकों के लिए यह स्थल किसी स्वर्ग से कम नहीं है।

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