हिमवान » आस्था के प्रमुख केंद्र » बौद्ध आश्रम कसार देवी अल्मोड़ा

बौद्ध आश्रम कसार देवी अल्मोड़ा

अल्मोड़ा का अन्तराष्ट्रीय बौद्ध आश्रम उच्च स्तरीय ध्यान एवं साधना करने वाले देसी विदेशी साधकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। यह साधना केन्द्र बौद्ध धर्म अनुयायियों की कग्युग शाखा का उत्तराखंड में स्थापित सबसे पुराना मठ है जिसे 1968 में स्थापित किया गया था। इस आश्रम को इवांग छोंग कोटलिंग डिगुग कग्यूत के नाम से भी जाना जाता है। यहां प्रदान की जाने वाली उच्च स्तरीय आध्यात्मिक शिक्षा के कारण विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायी इस केन्द्र में आते हैं।

स्वप्निल सक्सेना

अल्मोड़ा से सात किमी0 की दूरी पर स्थित कसारदेवी क्षेत्र को आध्यात्मिक उर्जा का केन्द्र कहा जाता है। प्राचीन समय से ही उच्च कोटी के संत इस स्थान की ओर साधना करने आते रहे हैं। स्वामी विवेकानंद, परमयोगी शून्यता, नींब करोरी बाबा, माँ  आनंदमयी आदि अनेक संत कसारदेवी आये हैं। कसारदेवी मंदिर की भूमि से सटा हुआ है बौद्ध दर्शन एवं ज्ञान का विख्यात केन्द्र कग्युग बौद्ध आश्रम जो विश्व स्तर का साधना एवं ध्यान केन्द्र है।

इस स्थान की आध्यात्मिक उर्जा से प्रभावित होकर बौद्ध विषयों के विद्वान डब्लू वाइ इवांस वैंज ने 1933 में इसे अपने निवास के लिए चुना था। वे बुक ऑफ़ डैड नामक प्रसिद्ध पुस्तक के रचियता थे। विख्यात बौद्ध विद्वान लामा आंगरिक गोविन्दा का निवास स्थल भी यही आश्रम रहा है। लामा गोविन्दा मूल रूप से जर्मन थे। बाद में वे बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। उनकी पत्नी ली गौतमी भी उन्हीं की तरह विद्वान थी। लामा गोविन्दा एवं ली गौतमी को तिब्बती बौद्ध ग्रंथों का मार्गदर्शी अनुवादक माना जाता है। उन्होनें विश्व आर्य मैत्रेय मंडल की स्थापना की थी । यहाँ रह कर उन्होने तिब्बत की रहस्यमय योग साधना पर अनेक हस्तलिखित पुस्तकों का अनुवाद किया। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक द वे आफ व्हाइट क्लाउड ने उन्हें अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्रदान की थी।

शोभित सक्सेना

आश्रम के स्थान को बाद में लामा गुरू कुनसांग रीनजींग ने लामा गोविन्दा से प्राप्त किया। उनकी पत्नी गुरूमाता सोनम छोटोन ने परम्परा को जारी रखते हुए इस केन्द्र का विकास बौद्ध मठ एवं अन्तराष्ट्रीय ध्यान केंद्र के रूप में किया।

  मुख्य मंदिर में भगवान बुद्ध की अत्यंत भव्य एवं सुन्दर प्रतिमा है जो लगभग 11 फुट ऊँची है ।यह प्रतिमा मंदिर की मुख्य प्रतिमा है। इनके दूसरी ओर गुरू पद्भसम्भव की प्रतिमा है। पद्मसम्भव अपनी दोनों पत्नियों सहित दर्शाये गये हैं। कक्ष में मक्खन की बनी अन्य छोटी प्रतिमायें भी हैं जिन्हें विशेष पूजन के अवसर पर तैयार किया जाता है । गर्मियों के मौसम में भी ये प्रतिमायें पिघलती नहीं हैं। मुख्य मंदिर को अनेक थंका चित्रों से सजाया गया है।

पिछले वर्षों में यह स्थान अन्तराष्ट्रीय  साधना का प्रसिद्ध केन्द्र बन चुका है। आश्रम की विधिवत स्थापना से अब तक अनेक अन्तराष्ट्रीय  समूह यहाँ ध्यान एवं साधना के लिए आ चुके हैं। ये समूह अमेरिका, जर्मनी, सिंगापुर आदि देशों से आये हैं। इनकी साधना तीन वर्ष तीन माह तीन दिन के लिए होती है। साधकों का इस पूरे समय में केवल पूजन के अवसरों को छोड़ कर शेष दुनिया से कोई सम्बन्ध नहीं रहता। इन साधकों को  बौद्ध आचार्य यहाँ विधिवत शिक्षा प्रदान करते हैं। देहरादून के विद्वान आचार्य इस स्थान के धार्मिक क्रिया कलापों को सम्पन्न कराते हैं।

यहाँ बुद्ध पूर्णिमा , महान बौद्ध गुरू महामहिम दलाई लामा का जन्मदिवस आदि त्योहार के रूप में मनाये जाते हैं। सभी धर्मों के लोग यहाँ आकर निःशुल्क साधना एवं ध्यान कर सकते हैं। इस केन्द्र में विशेष अवसरों पर ही दर्शनार्थियों के लिए आवागमन की अनुमति है। कुन्दन सिंह खम्पा बताते हैं कि हर तीसरे वर्ष यहाँ विश्व शांति के लिए यज्ञ होता है। मंदिर के प्रबन्धक बताते हैं कि यह स्थली महान संत इ डब्लू वेंज, लामा आंगरिक गोविन्दा एवं ली गौतमी की तपः स्थली है इसलिए भविष्य में भी इसे और अधिक विकसित करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
Protect your monuments, save your heritage

Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments
error: Content is protected !!