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अल्मोड़ा का गौरवशाली इतिहास है

अल्मोड़ा नगर का इतिहास पुराना है। अल्मोड़ा नाम एक पवित्र घास के कारण पड़ा जिसे स्थानीय लोग कटारमल सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना के लिए ले जाते थे। यह घास इस क्षेत्र में प्रचुरता से होती थी।


लगभग साढ़े चार सौ साल पुराने अल्मोड़ा की राजनैतिक कथा चम्पावत से चंद वंश के राजा भीष्म चंद के अल्मोड़ा आगमन तथा वर्ष 1560 में नगर के पूर्वी छोर पर स्थित खगमरा कोट पर अधिकार से शुरू होती है। तब तत्कालीन खगमरा कोट पर कत्यूरी वंश के एक छोटे से राजा का अधिकार था।

रनीश एवं हिमांशु साह

राज्य के भविष्य में विस्तार तथा केन्द्रीय स्थान पर राजसत्ता का केन्द्र स्थापित करने की योजना के अन्तर्गत राजा भीष्मचंद ने इस कोट को विजित करने के बाद अल्मोड़ा को राजधानी के रूप में विकसित करने का सपना देखा। लेकिन अल्प समय मे ही पूर्व कत्यूरी राजा द्वारा भीष्म चंद का वध कर दिया गया जिसके बाद उसके पुत्र बालोकल्याण चंद ने खगमरा कोट को नितांत असुरक्षित पाकर वर्तमान छावनी क्षेत्र में नये दुर्ग का निर्माण कर अल्मोड़ा को राजधानी के रूप में विकसित किया। वर्ष 1563 में राजधानी का विधिवत स्थानांतरण खगमरा से अल्मोड़ा में हुआ। लेकिन पूर्ण विकसित नगर बनने से पूर्व ही बालो कल्याण चंद का निधन हो गया। उसका उत्तराधिकारी रामचंद्र भी इस योजना को ज्यादा आगे नहीं बढ़ा पाये। बाद में रूद्रचंद और कल्याणचंद ने तीव्रगति से इसे नगर के रूप में विकसित किया। चम्पावत से दरबारी और अधिकारी आकर अल्मोड़ा में बसने लगे। नगर के अन्दर पहला चंद कालीन भवन वर्तमान पल्टन बाजार के पास नैल के पोखर के समीप बनाया गया।


रूद्रचंद की मुगल सम्राट अकबर से मित्रता रही। उनके दरबार में उसका आना जाना था। रूद्रचंद के काल में ही मल्ला महल का निर्माण हुआ। दक्षिण से उत्तर की ओर बसे इस नगर को राजा लक्ष्मीचंद ने बाग बगीचों का नगर बना अति सुन्दर बना दिया। लक्ष्मेक्ष्वर महादेव मंदिर इन्हीं का बनवाया हुआ है। सर्वाधिक कार्यकाल चंद वंश के सबसे प्रतापी नरेश राजा बाजबहादुर चंद का रहा। इस राजा को शाहजहां ने बाजबहादुर की उपाधि दी थी। इनके द्वारा गढ़वाल से नंदा की प्रतिमा वर्ष 1671 में अल्मोड़ा लायी गई थीं जिन्हें मल्ला महल के देवी मंदिर में स्थापित किया गया था।

चंद वंशी के दूसरे प्रतापी नरेश राजा उद्यान चंद ने अल्मोड़ा के तीन प्रसिद्ध मंदिर उद्योत चंदेश्वर, पार्वतेश्वर एवं त्रिपुरा सुन्दरी का निर्माण करवाया। इसी राजा के समय में वर्ष 1688 में निजी आवास के लिए एक नया महल तथा एक विशाल पोखर तथा भवन का भी निर्माण करवाया गया। यह महल तल्ला महल तथा भवन एवं पोखर ड्योढ़ी पोखर कहलाया। चंद राजकुमार भोलानाथ की हत्या के प्रायश्चित के रूप में नगर के विभिन्न स्थानों में अष्ट भैरव मंदिरों का निर्माण उद्योत चंद के पुत्र राजा ज्ञानचंद ने करवाया।

शोभित सक्सेना

नगर मे पेयजल की निर्बाध उपलब्धता के लिए चंद राजाओं द्वारा अनेक नौलों का भी निर्माण करवाया गया जिनमें से आज भी अनेक नौले पेयजल की पर्याप्त आपूर्ती करते हैं। चंद शासकों के काल में ही 1729 तक यह क्षेत्र एक विकसित नगर का रूप ले चुका था।


वर्ष 1744-45 के बाद का युग अल्मोड़ा के लिए अन्धकार का युग रहा। रूहेला सरदार अली मोहम्मद ने दस हजार सैनिकों के साथ अल्मोड़ा पर आक्रमण कर अल्मोड़ा को लूटा। उसके सैनिक लगभग 10 महीने अल्मोड़ा में रहे। लेकिन चंद राजा कल्याण चंद ने जल्दी ही रूहेलों को हरा कर अल्मोड़ा को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। परन्तु कमजोर राजसत्ता के कारण 1790 में यह नगर गोरखों के तथा वर्ष 1815 में अंग्रेजों के अधिकार में चला गया।

(अमर उजाला नैनीताल संस्करण में प्रकाशित आलेख )



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Proizd.ua
2 years ago

Great content! Keep up the good work!

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