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पाताल देवी मंदिर अल्मोड़ा मां दुर्गा के पत्रेश्वरी रूप  को समर्पित है

उत्तराखंड की धरती देवी-देवताओं की भूमि मानी जाती है, जहां प्रकृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। इसी देवभूमि में स्थित है पाताल देवी मंदिर अल्मोड़ा जो मां दुर्गा के पत्रेश्वरी रूप  को समर्पित है तथा जिन्हें नगर की ऱ़क्षा करने वाली नौ देवियों में से एक माना जाता है।

कौशल सक्सेना

यह मंदिर अल्मोड़ा से पिथौरागढ़ जाने वाले मोटर मार्ग पर धार की तूनी नामक स्थल से लगभग एक किलो मीटर की दूरी पर शैल गांव में स्थित है। प्राचीन समय में मंदिर के चारों ओर चार प्राकृतिक जल कुंड थे। मंदिर राजा दीपचंद के सेनापति सुमेर अधिकारी ने बनवाया था। उन्होंने मां दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा को मंदिर के रूप में मूर्त रूप दिया।

हालांकि समय की मार ने इस प्राचीन मंदिर को ध्वस्त कर दिया। लेकिन इसके बाद गोरखा शासन (1790-1815) मंदिर का पुनर्निर्माण कराया गया। गोरखाओं के शासन काल में कई धार्मिक स्थलों का संरक्षण और पुनर्निर्माण हुआ, जिसमें पाताल देवी मंदिर भी शामिल है। मंदिर पश्चिमोंभिमुख है। संरचना की दृष्टि से मंदिर उत्तराखंड की लोकप्रिय कला शैली नागर शैली में बना हुआ है तथा त्रिरथ है। शिखर पर गजसिंह भी अंकित हैं। जो उत्तराखंड के शाक्त  मंदिरों के शिखर का प्रमुख आभूषण है। शिखर भूमि आमलकों से सज्जित है। मंदिर के प्रदक्षिणा पथ को स्तम्भों पर आधारित कर स्थानीय पटालो से आच्छादित किया गया है। मंदिर के गर्भगृह में एक प्राकृतिक चट्टान को ही श्रद्धालु शक्तिपीठ के रूप में पूजते हैं।मंदिर के समीप ही एक अन्य छोटा मंदिर भी बना हुआ है। समूचे मंदिर के पत्थर भी स्थानीय चट्टानों को काट कर प्राप्त किये गये हैं।

कौशल सक्सेना

सम्भव है कि कभी यहां  प्राचीन मंदिर शिव मंदिर रहा होगा। मंदिर के बाहर स्थापित नंदी इस तथ्य की पुष्टि करते हैं। वर्तमान में पाताल देवी मंदिर को मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करने वाला माना जाता है। शिवरात्री में यहां विशाल मेला लगता है। मंदिरके पीछे की ओर अनेक प्राचीन संत महात्माओं की समाधियां भी हैं। मां आनंदमयी का प्रसिद्ध आश्रम भी मंदिर के एकदम समीप ही है। मंदिर के महत्व को देखते हुए इसे उत्तराखंड पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया है।

आज यह मंदिर धार्मिक आस्था का केंद्र तो है ही, लेकिन इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। दुर्भाग्यवश, कुंड का सूख जाना और जल स्रोतों का लुप्त हो जाना इस बात ओर संकेत करता है कि हमें अपने धार्मिक स्थलों के पर्यावरणीय संरक्षण पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

स्थानीय समुदायों और प्रशासन को मिलकर पाताल देवी मंदिर जैसे स्थलों के प्राकृतिक स्वरूप को पुनर्जीवित करने के प्रयास करने चाहिए।

कौशल सक्सेना

पाताल देवी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह उत्तराखंड की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहर का प्रतीक है। इसकी पौराणिकता, स्थापत्य और नैसर्गिक परिवेश इसे एक विशिष्ट स्थान प्रदान करते हैं। ऐसे स्थलों के संरक्षण और प्रचार-प्रसार से हम न केवल अपनी विरासत को संजो सकते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी जड़ों से जोड़ सकते हैं।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
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