बैजनाथ को कत्यूरी नरेशों की पुरानी राजधानी कार्तिकेंयपुर से जोड़ा जाता है । यह स्थान अल्मोड़ा-बागेश्वर मार्ग पर कौसानी से 18 किमी. की दूरी पर बसा है । स्कन्द पुराण के मानस खंड में गोमती नदी एवं गारूड़ी नदियों के संगम पर बैजनाथ नामक शिवलिंग बताया गया है । इस स्थान को स्कदपुराण में शिव विवाह से भी सम्बन्धित किया गया है । यहीं पर चतुर्दिक देवालय फैले हुए हैं । शिलालेखों से ज्ञात होता है कि कत्यूरी, चंद तथा गंगोली राजाओं ने समय पर यहाँ मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया था ।

बैजनाथ मंदिर समूह गोमती नदी के किनारे अवस्थित है । यहाँ के मंदिर उत्तर भारतीय शैली में निर्मित हैं । उर्ध्वछंद योजना में कुछ मंदिर त्रिरथ विन्यास वाले हैं । वेदीबंधों को ज्यामितीय अलंकरणों से सज्जित लिया गया है । उद्गमयुक्त रथिकाऐं मंदिरों के सौन्दर्य में चार चांद लगाती हैं । मंदिरों में या तो अर्धमंडप योजना बनायी गयी है अथवा वे गूढ़मंडप सहित बनाये गये हैं । अलंकृत स्तम्भ अष्टास्त्र हैं । किन्हीं मंदिरों में गूढ़मंडप विन्यास के साथ-साथ अर्धमंडप योजना भी है । देवआकृतियों से रथिकाऐ सजायी गयी हैं । मुख्य मंदिर में पार्वती की आदमकद सुन्दर प्रतिमा स्थापित की गयी है, यद्यपि मुख्यदेवता के रूप में शिवलिंग स्थापित किया गया है । मुख्य मंदिर का जीर्णोद्धार किया जा चुका है । मंदिर का काल निर्धारण ग्यारहवीं शती के आस-पास किया जा सकता है । प्रतीत होता है कि वर्ष १५५२ ईं. में भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ था ।

बैजनाथ मंदिर समूह में एक अन्य मंदिर लक्ष्मी-नारायण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है । यह मंदिर भी योजना एवं विन्यास की दृष्टि से महत्वपूर्ण है । पंचाग मंडोवर वाले इस मंदिर में गूढ़मंडप भी बना है । ललाटबिम्ब देव आकृतियों से सजाये गये हैं । कहा जाता है कि विष्णु की जो प्रतिमा गणनाथ में वर्तमान में स्थापित है यह पहले लश्मी-नारायण मंदिर की मूल प्रतिमा थी । इस समूह का दूसरा मंदिर अभिलेखयुक्त है । बैजनाथ समूह का ही एक अन्य मंदिर राक्सी देवाल है । कथा प्रचलित है कि यहां रण नामक राक्षस मारा गया था । उंचे शीर्ष वाला यह मंदिर भी उत्तर भारतीय शैती का मंदिर है । इसका विन्यास त्रिरथ है । शुकनास से अलंकृत यह देवालय सादी रथिकाओं से युक्त है ।

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