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बालेश्वर मंदिर-चम्पावत

बालेश्वर का मंदिर शिल्प अपने आप में अनोखा है। इसका शिल्प कुमाऊँ में प्राप्त अन्य मंदिरों से अलग है । यह एक संयुक्त मंदिर है जिससे कभी दो मंदिर रहे होंगे जो आच्छादित कर एक दूसरे से जोड़े गये थे । प्रतीत होता है कि प्रत्येक मंदिर अपने आप में परिपूर्ण है जो एक गर्भगृह तथा एक मंडप युक्त था । लेकिन समय के थपेड़ों ने इस मंदिर का एक भाग नष्ट कर दिया है । इनमें से एक मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया है जबकि अवशेष के रुप में दूसरे मंदिर का केवल अधोभाग ही शेष बचा रह गया है ।

पुराविदोें का अनुमान है कि कभी गर्भगृह की संरचनायें सप्तरथों से युक्त रही होंगी जबकि मंडोवर पंच रथों से युक्त रहा होगा । प्रवेश द्वारों के स्तम्भों के सुरक्षित होने के कारण उतरंग पर गणपति का अंकन देखा जा सकता है ।

पश्चिम दिशा की छोर के मंदिर के अपेक्षाकृत कम भग्न होने से उनमें मंडप और अर्घमंडप अथवा प्राग्रीव की संरचनाये दृष्टव्य हैं । मूल रुप से चैकोर मंडप का निर्माण किया गया था , जिसमें कभी बारह तक स्तम्भ रहे होंगे । डोम आकार की इसकी छत इन स्तम्भों पर आधारित रही होगी।

पूरे मंदिर में भव्य जीर्णोद्धार नककाशीदार अलंकरण हैं । गजथरों की सबसे नीचे की और पट्टी छोड़ी गयी है जबकि ऊपर की और ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव आदि देवताओं का अंकन क्रिया गया है । पुष्प अलंकरणों की भी बहुतायत है । वितान को सजाकर सकेन्द्रित वृत्तों के मध्य नटराज शिव इत्यादि का अंकन हुआ है । स्तंम्भों को भी अलंकृत किया गया है ।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
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