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इंडो-यूरोपियन शैली की विरासत है-अल्मोड़ा का नार्मल स्कूल

अल्मोड़ा। एक शती पूर्व कुमाऊँ मंडल के पर्वतीय क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार के उद्देश्य से अल्मोड़ा नगर में स्थापित किये गये इंडो-यूरोपियन शैली में निर्मित नार्मल स्कूल की इमारत दरकने लगी हैं। यह भवन अब अत्यधिक जीर्ण हो चुका है। जल्दी ही इसका संरक्षण नहीं किया गया तो यह खूबसूरत इमारत हमेशा के लिए नष्ट हो जायेगी।

वर्ष 1902 में अल्मोड़ा में अंग्रेज सरकार द्वारा गावों में शिक्षा केन्द्रों के विस्तार के लिए स्कूली टीचर तैयार करने हेतु इस सुन्दर इमारत की नींव में डाली गई थी। इस भवन के बनकर तैयार हो जाने पर क्षेत्र के शिक्षित युवकों को यहां अध्यापक प्रशिक्षण के लिए लाया गया । इस स्कूल की स्थापना के बाद ही पूरे इलाके में व्यापक रूप से अंग्रेजी पद्धति से प्राथमिक शिक्षा प्रारम्भ हुई। अल्मोड़ा में इससे पूर्व केवल रैमजे, एडम्स गल्र्स स्कूल तथा शासन चलित कुछ राजकीय स्कूल ही थे। परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों के लिए प्रशिक्षित अध्यापक न मिलने से शिक्षा के समुचित प्रसार के प्रयास निरर्थक साबित हो रहे थे।ऐसे में प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी दूर करने के लिए अध्यापक प्रशिक्षण संस्थान की अत्यधिक जरूरत महसूस की जा रही थी।

वर्ष 1949 में इस भवन में जूनियर ट्रेंनिंग स्कूल स्थापित किया गया जिसमें मिडिल स्कूलों में पढ़ाई के लिए शिक्षक प्रशिक्षण दिया जाने लगा। 1967 में इस भवन में राजकीय जूनियर बेसिक ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई जिसमें कुमाऊं-गढ़वाल के इंटर पास युवकों को बेसिक प्रशिक्षण दिया जाता था।

उस समय इस स्कूल की मान्यता इतनी अधिक थी कि यहा से प्रशिक्षण के बाद कालेजों में सीधे नियुक्ति मिल जाती थी। सन् 1977 में इसे क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान के रुप में परिवर्तित कर इसमें सेवारत शिक्षकों के लिए किताबी प्रशिक्षण से इतर लेखन, शोध एवं सर्वेक्षण जैसे अनेक कार्यक्रम आयोजित किए जाने लगे।बाद में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत इस भवन में जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की गई। वर्तमान में यहा डाइट का कार्यालय है।

इस भवन के निर्माण के समय भविष्य में होने वाले विस्तार को देखते हुए भवन से लगी लगभग चार लाख वर्ग फुट भूमि जोड़ी गयी थी जो आज भी रिकार्ड में दर्ज है।चार छात्रावास, एक राजकीय आदर्श विद्यालय एवं कुछ आवासीय भवन इसमें बने है। लेकिन ये सभी धीरे-धीरे खंडहरों में तबदील होते जा रहे हैं। भवनों के खिड़की दरवाजों की लकड़ी सड़ गल गई है। छतें उखड़ रही हैं। बरसात के मौसम में वर्षा का पानी अन्दर कमरों में भर जाता है। जगह जगह टूट-फूट के कारण जर्जर हो गया भवन कभी भी धराशायी हो सकता है। शिक्षा के क्षेत्र में करीब सौ साल तक उल्लेखनीय भूमिका निभाने के बाद यह आकर्षक इमारत अब दुर्दशा की शिकार है।


लेकिन इस भवन की कलात्मक निर्माणशैली एवं इतिहास को देखते हुए स्थानीय बुद्धिजीवी इस तरह की इमारतों को बचाने के लिए जन चेतना जाग्रत करने के प्रयास कर रहे है। हो सकता है कि उनके यह प्रयास रंग लायें और एक बेहतरीन धरोहर नष्ट होने से बच जाये।

अल्मोड़ा नगर में तराशे गये स्थानीय पत्थरों से बना गवर्नमेंट नार्मल स्कूल इंडो-यूरोपियन शैली की दर्शनीय विरासत है। यूरोपियन तथा भारतीय शिल्प समन्वय से बने इस भवन में यूरोपियन स्टाइल के बुर्ज, खिड़की, दरवाजे, मेहराब तथा शिल्प देखने लायक है । छत इंग्लैंड से मंगाई गई नालीदार चादरों से आच्छादित है।तांबे के तड़ित चालक लगाकर इसे आकाशीय बिजली प्रतिरोधक बनाया गया था। भवन की आन्तरिक संरचना इसे गर्मियों में ठंडा तथा जाड़ों में गरम रखकर वातानूकूलित होने का अहसास देती है। यह भवन शिल्प का एक बेजोड़ नमूना है जिसे मूल रूप में संरक्षित करने की जरूरत है।

स्मारकों को बचाएं, विरासत को सहेजें
Protect your monuments, save your heritage

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